प्रतिकर निर्धारण के सम्बंध में यह सुस्थापित विधि है कि प्रतिकर उचित एवं न्यायसंगत होना चाहिए।
2.
यह सुस्थापित विधि है कि सभी मामलों मे न्यायिकेत्तर संस्वीकृति को किसी अन्य साक्ष्य से समर्थित होने की आवष्यकता नही है।
3.
यह भी सुस्थापित विधि है कि संदेह की दशा में इसका कोई लाभ विधितयः अभियोजन पक्ष को प्रदान नहीं किया जा सकता है।
4.
यह भी सुस्थापित विधि है कि जहॉ मृतक अविवाहित और वयस्क है, वहॉ उसके माता-पिता की उम्र के आधार पर गुणांक का निर्धारण किया जाना चाहिए।
5.
यह सुस्थापित विधि सिद्धान्त है कि अस्थायी निषेधाज्ञा के उद्देश्यों से इस स्तर पर न्यायालय का उद्देश्य यह होना चाहिए कि विवादित सम्पत्ति का स्वरूप यथा-सम्भव अपरिवर्तित रहे।
6.
इस प्रकार यह भी सुस्थापित विधि है कि अपराधिक मामलों में यह दायित्व अभियोजन पक्ष का है कि वह अभियुक्तगण के विरूद्ध आरोपित आरोपों को सभी युक्तियुक्त संदेह से परे साबित करे।
7.
यह भी सुस्थापित विधि है कि संदेह की दशा में इसका कोई लाभ अभियोजन पक्ष को नहीं मिल सकता है, बल्कि संदेह का लाभ पाने का विधितया हकदार अभियुक्त पक्ष ही होता है।
8.
यह सुस्थापित विधि है कि न्यायिकेत्तर संस्वीकृति दोशसिद्धि का आधार हो सकती है परन्तु उसके लिये यह आवष्यक है कि न्यायिकेत्तर संस्वीकृति संदिग्ध न हो एवं उसे सन्तोशजनक रूप से साबित किया गया हो।
9.
उक्त सुस्थापित विधि की स्थिति के परिपेक्ष्य में यदि प्रस्तुत प्रकरण का अवलोकन किया जायें तो यह स्वीकृत हैं कि आरोपी द्वारा परिवादी को उक्त चैक उससे लिये गये ऋण के भुगतान हेतु दिया गया था।
10.
यह एक सुस्थापित विधि है कि मृतका के साथ क्रूरता या उसे तंग करने का व्यवहार मृत्यु से कुछ पूर्व किया गया होना चाहिए, जो सामान्यतः प्रत्येक मामले में तथ्यों और परिस्थितियों पर निर्भर करता है।